श्रीमद्भागवत गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।”
अर्थात जब जब धर्म की हानि और अधर्म का उत्थान हो जाता है तब तब सज्जनों के परित्राण और दुष्टों के विनाश के लिए में विभिन्न युगों में उत्पन्न होता हूँ। धर्म ग्रंथों के आधार पर नारायण में दशावतार लिए हैं। पहले तीन अवतार सतयुग में, चार अवतार त्रेता में, दो द्वापर में, और अब अंतिम अवतार कल्कि कलियुग में अवतरित होगा।
भगवान विष्णु ने विश्वकल्याण तथा धर्म की रक्षा करने के उद्देश्य से कई अवतार लिए। भगवान विष्णु ने कुल 24 अवतार लिए है, परंतु सनातन धर्म में 10 अवतार को मुख्य माना जाता है। भगवान विष्णु के 10 अवतार में के केवल श्री कृष्ण और श्री राम के विषय में लोग पूर्ण रूप से जानते है। परंतु बाक़ी अवतारों के बारे में इतना नहीं जानते। इस लेख का उद्देश्य है कि भगवान विष्णु के 10 अवतार के विषय में आपको विस्तार से बताये क्योंकि इनका हमारे धर्म पर बहुत गहरा प्रभाव है।
1.मत्स्य अवतार-
आज हम जानते हैं विष्णु जी के प्रथम अवतार मत्स्य के बारे में। युगों पहले * राक्षस ने चारों वेदों का अपहरण करके उन्हें क़ैद कर लिया था। तब पृथ्वी पर से ज्ञान विलुप्त होने लगा और असुरी शक्तियां बढ़ने लगी।
तब महादेव ने पृथ्वी को जलमग्न करने का निर्णय लिया। नई पृथ्वी की स्थापना हेतु एक मनुष्य का होना आवश्यक था। इसलिए भगवान विष्णु ने मत्स्य का अवतार लिया।
एक समय की बात है, सत्ययुग के दौरान सत्यव्रत नामक एक राजा हुआ करते थे, एक दिन हमेशा की तरह जब वह नदी में स्नान कर अर्घ दे रहे थे, तब उनके अंजलि में भरे पानी में एक मछली आ गई।
राजा सोचा कि वह उस मछली को फिर पानी में छोड़ देंगे, परंतु वह ऐसा करते इससे पहले ही वह मछली उनसे विनती करने लगी की कृपया आप मुझे इस पानी में फिर से ना डालें। मुझ पर दया कीजिए इस बड़े से जलाशय में क़द छोटा होने की वजह से बड़े जीवों से मुझे भय लगता है।
अगर इस पानी में मैं फिर से गई तो बड़ी मछलियाँ मुझे हानि पहुँचायेगी। राजा दुविधा में पड़ गए, फिर उन्होंने उस मछली को अपने कमंडल में डाला और अपने घर ले आये। जैसे जैसे समय बीता वह मछली का अकार बढ़ता चला गया।
राजा की प्रार्थना सुन कर भगवान विष्णु राजा के सामने प्रकट हो गए और राजा से कहा कि, आज से ठीक 7 दिन बाद महाप्रलय होने वाला है। जब प्रलय होगा तब एक विशाल नाव तुम्हारे पास तुम्हारी सहायता करने आएगी। तब तुम सप्तऋषि, औषधियां, बीज और प्राणियों को साथ लेकर उस नाव में बैठ जाना।
जब वह नाव तुम्हारे आपे से बाहर हो जाएगी तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हें बचाने आऊँगा। फिर तुम वासुकि नाग के साथ नाव को मेरे सींग से बांध देना।
2.कूर्म अवतार-
यह श्रीहरी का दूसरा अवतार है, पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन में सहायता करने के कूर्म अवतार लिया। जिसे कच्छपावतार यानी कछुए का अवतार भी कहा जाता है। एक बार की बात है, ऋषी दुर्वासा ने देवराज आई दर को एक माला भेंट की, इंद्र ने वो माला ऐरावत को को पहना दी ऐरावतने वो माला अपने पैरों तले कुचल दी।
इस बात का पता चलने पर ऋषि दुर्वासा ने सारे देवताओं को श्राप दिया की वो शक्तिहीन हो जाएंगे उसी समय दानवों ने देवताओं पर हमला कर कर दिया। शक्ति ना होने के कारण देव दानव का सामना न कर पाएँ।
विचलित हो कर सभी देव भगवान विष्णु के पास सहायता माँगने गये, तो भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के लिए कहा। सभी देव और दैत्यों समुद्र मंथन के लिए राजी हो गये। समुद्र मंथन के समय देवों और दैत्यों ने मन्दराचल पर्वत को मथानी तथा नागराज वासुकि को बेटी बनाया गया।
पर्वत को मंथन के हितों से उखाड़ा था परंतु नीचे कोई आधार न होने के कारण पर्वत समुद्र में डूबने लगा तब भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार यानी कछुए के रूप में आकर अपनी विशाल पीठ पर सहारा दिया और समुद्र मंथन में सहायता की। इस प्रकार समुद्र मंथन को सफल बनाया गया।
3.वराह अवतार-
मत्स्य और कूर्म अवतार के बाद भगवान विष्णु का तीसरा अवतार है वराह। वराह मतलब शुकर। यह श्रीहरी के दस प्रमुख अवतारों में से एक अवतार है। धर्मग्रन्धों के अनुसार हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु नामक दानवों ने भगवान ब्रह्मा में प्रसन्न कर एक वरदान माँगा की प्रभु हमे ऐसा वर दीजिए जिससे इस पृथ्वी पर कोई प्राणी, कोई जानवर या देवता हमे पराजित ना कर सके और ना ही कोई मार सके। ब्रह्माजी तथास्तु कह कर अपने लोक लौट गये।
वरदान पा कर पर चारों और तबाही मचाने लगे। फिर एक बार की बात है, जब पुरातन समय में दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर सागर में छिपा दिया तब ब्रह्मा की नाक से भगवान विष्णु वराह रूप में प्रकट हुए। भगवान श्री हरि के इस विशाल वराह रूप को देखकर सभी देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों ने उनसे प्रार्थना की। सबके आग्रह करने पर भगवान विष्णु के तीसरे अवतार भगवान वराह ने पृथ्वी को ढूंढना प्रारंभ किया।
भगवान वराह ने अपनी विशाल थूथनी की सहायता से उन्होंने पृथ्वी का पता लगा लिया और सागर के भीतर जाकर अपने दांतों पर रखकर वे पृथ्वी को बाहर ले आए। जब दैत्य हिरण्याक्ष ने यह देखा तो उसने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। आख़िर में भगवान वराह ने दैत्य हिरण्याक्ष का वध कर दिया और विश्व शांति का उपदेश दिया। इसके बाद भगवान वराह ने अपने खुरों से जल को स्तंभित कर उस पर पृथ्वी को स्थापित कर दिया। इसके पश्चात भगवान वराह अंतर्धान हो गए।
4.नरसिंह अवतार-
भगवान विष्णु के 10 अवतार में से एक है नरसिंह अवतार। यह अवतार भगवान विष्णु ने अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की रक्षा और देत्यराज हिरण्यकशिपु का वध करने के लिए धारण किया था। भगवान नरसिंह की कथा कुछ इस प्रकार है, हिरण्यकशिपु जो दैत्यों का राजा था, अपने आपको सबसे बलवान समझता था उसे ब्रह्माजी से यह वरदान मिला था कि कोई भी देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी, न दिन में, न रात में, चाहे वह धरती पर हों या आकाश में किसी भी शस्त्र या अस्त्र का उपयोग कर उसे नहीं मार सकता।
जो भी भगवान विष्णु को पूजता, हिरण्यकशिपु उसे दंड देता। परंतु उसका अपना पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था जब इस बात का हिरण्यकशिपु को पता चला, तब उसने प्रह्लाद को भगवान विष्णु की करने से रोका, परंतु प्रह्लाद नहीं माना। इसलिए हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को मृत्युदंड दे।
होलिका को अग्नि से ना जलने का वरदान प्राप्त था जब वह प्रह्लाद को मृत्युदंड देने अग्नि पर जाकर बैठी प्रह्लाद टेन भी भगवान विष्णु का स्मरण कर कर रहे थे। होलिका का उस अग्नि में जल गई परंतु प्रह्लाद की भक्ति के कारण उसे कोई हानि नहीं पहुँची। प्रह्लाद को बचाने के लिए भगवान विष्णु नरसिम्हा के अवतार में एक खम्भे से बाहर आए और उन्होंने प्रह्लाद के प्राण बचाए और हिरण्यकशिपु का अपने नाखूनों से वध किया।
5.वामन अवतार-
त्रेता युग में दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर कब्जा कर लिया था, सभी देवता असहाय थे और इस दुविधा से बाहर निकलने के लिए उन्होंने भगवान विष्णु से मदद की याचना की। देवताओं को स्वर्गलोक वापस दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। एक दिन बली रहा ने महायज्ञ का आयोजन किया तब वामन उस यज्ञ ने पहुँच गये, उन्होंने बलि से 3 पद धरती दान में माँगी।
बली ने वामन की इच्छा का माँ रखा। तब भगवान वामन ने अपना एक पैर धरती पर रखा और दूसरा पैर स्वर्ग पर, परंतु अब तीसरा पैर रखने के लिए कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहाँ पर बलि का राज था। वामन क्रोधित हो गए तब बलि उनके सामने नतमस्तक हुआ और उसने वामन देव को तीसरा पग अपने सिर पर रखने के लिए कहा।
वामन देव के पैर रखने की वजह से बलि पाताल लोक में पहुँच गया। बलि के इस नेकी वामन देव ख़ुश हुए और उन्होंने उसे पाताल लोक का राजा बना दिया। इस प्रकार देवताओं को स्वर्गलोक की प्राप्ति हुई और भगवान विष्णु की पंच रूप भगवान वामन लीन हो गए।
6.परशुराम अवतार-
हैययवंश में कार्तवीर्य अर्जुन बड़ा ही प्रतापी राजा था, उसने अपने गुरु दत्तात्रेय को प्रसन्न करके वरदान के रूप में उनसे हज़ार भुजाएं प्राप्त की थी। हजार भुजाओं के कारण ही उसे सहस्त्रबाहु के नाम से भी जाना जाता है । उसे अपने अपने वैभव और शक्ति का बहुत घमंड था। उसे कई सिद्धियां भी प्राप्त थी। लंकाधिपति रावण को भी उसने बंधी बना लिया था। एक बार राजा सहस्त्रबाहु शिकार करते हुए जमदग्नी के आश्रम में पहुँच गया, जिस पर ऋषि जमदग्नी ने उनका बहुत आदर सत्कार किया, ऋषि जमदग्नी के पास कामधेनु गाय थी। उसी गाय की वजह से ऋषि जमदग्नी ने सब की अच्छी तरह से आवभगत किया।
सहस्त्रबाहु ने जब ये सब देखा तो कामधेनु गाय उसको पसंद आ गई। वह बलपूर्वक गाय को आश्रम से ले गया और जब भगवान परशुराम को यह बात पता चली तो अपने पिता की आत्म सम्मान की रक्षा के लिए वे राजा सहस्रबाहु से कामधेनु गाय वापस लेने का है जिसके बाद सहस्रबाहु और भगवान परशुराम ने युद्ध किया, जिसमें राजा की मृत्यु हो गई। इसके बाद सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने प्रतिशोध स्वरूप जब परशुराम अनुपस्थित थे उनके उनके जमदग्नि को मार डाला। इससे विचलित होकर उनकी माता रेणुका भी जमदग्नी के साथ सती हो गई।
इस घटना से भगवान परशुराम अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने यह प्रतिज्ञा की, की हैययवंश के सभी क्षत्रियों का नाश कर के ही दम लूंगा। उन्होंने सबसे पहले महिष्मति नगरी में अधिकार प्राप्त किया और उन्होंने सहस्रबाहु के सभी पुत्रों और उनका साथ देने वाले सभी क्षत्रियों का नाश किया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने पृथ्वी पर इक्कीस बार क्षत्रियों का विनाश किया था।
7.श्रीराम अवतार-
भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से प्रमुख अवतार है श्री राम, भगवान श्रीराम का त्रेतायुग में जन्म हुआ। यह अवतार लेने के पीछे एक नहीं अनेक वजहें हैं। श्री राम अवतार कई वरदानों और श्रापों का सम्मिलित परिणाम है। दैत्यराज हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण बनकर जन्मे।
श्रीहरी के वरदान अनुसार उनके हाथों ही हिरण्यकश्यप और हिरण्याक् उद्धार होगा, इसी वरदान के कारण श्रीराम का जन्म हुआ। साथ ही ऋषि कश्थ्य और अदिति की कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया, और स्वयं ही श्रीराम के रूप में प्रकट हुए। त्रेता युग में जब लंकापति रावण ने पूरी सृष्टि में आतंक मचा रखा था।
तब भगवान विष्णु ने राजा दशरथ और रानी कौशल्या के घर जन्म लिया। परंतु उनका जीवन कई कठिनाइयों से भरा हुआ था। अपने पिता का मान रखकर राजपाट छोड़ उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण और अर्धांगिनी माता सीता के साथ 14 साल वनवास में बितायें। उस दौरान रावण ने माँ सीता का हरण किया, जिन्हें हनुमान जी और पूरी वानर सेना की मदद से प्रभु श्री राम ने ढूंढा और इसी के साथ रावण का वध किया।
8.कृष्णा अवतार-
भगवान विष्णु के आठवे और सबसे नटखट अवतार है श्री कृष्ण, द्वापर युग में भगवान श्रीहरि ने श्री कृष्ण अवतार लिया और कई दुष्ट दानवों का नाश किया। जब सारा संसार मधुरानरेश कंस से भयभीत था, तब श्री कृष्ण ने उसका भी वध किया और संसार में शांति फैलाई। श्री कृष्ण महाभारत के दौरान, जान अर्जुन अपने मार्ग से भटक गए, तब श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया।
श्री कृष्ण युद्ध में अर्जुन के मार्गदर्शक और सारथि बने। उनके मार्गदर्शन से महाभारत में पाण्डवों की जीत हुयी और धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बनाया। भगवान विष्णु के इस अवतार ने न सिर्फ धर्म का मार्ग सिखाया बल्कि प्रेम, मित्रता, भक्ति, सही अर्थ में सत्य क्या है, और जीवन जीने का वास्तविक मार्ग क्या है, यह सब से अवगत कराया।
9.बुद्ध अवतार-
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब दानव व दैत्यों की शक्ति देवताओं पर हावी होने लगी थी। दैत्यों और देवताओं के बीच हुए युद्ध में देवता हार गये थे और स्वर्गलोक पर दानवों का राज हो गया था। सभी देव स्वर्गलोक छोड़ कर चले गये। दानवों को भी यह दर था कि कहीं देवता फिर से स्वर्गलोक पर कब्जा न कर ले, जिसके समाधान के लिए दैत्य देवराज इंद्र के पास गये और समस्या बतायी। देवराज इंद्र ने दैत्यों को यज्ञ व वेदों का आचरण करने को कहा। सभी दैत्य देवराज इंद्र की बात मानकर वेद के अनुसार आचरण करने लगे।
दानवों से भयभीत सभी देव मदद की गुहार लेकर भगवान श्रीहरी के पास पहुँचे। भगवान विष्णु के देवों से कहा कि वह उनकी मदद करने के लिए स्वयं भगवान बुद्ध का अवतार लेकर अवतरित होगे। देवों को स्वर्गलोक वापस दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने बुद्ध अवतार लिया, उनके एक हाथ में मथानी थी और वह रास्ते पर पैर रखने से पहले रास्ते को साफ़ करते हुए आगे बढ़ रहे थे।
भगवान बुद्ध दानवों के पास गए और उनसे यज्ञ करने के लिए मना किया। भगवान बुद्ध ने कहा कि यज्ञ करने से सूक्ष्म जीवों को जीवहानि हो जाती है। मैं ख़ुद जीव हिंसा से बचने के लिए रास्ते को साफ करके चलता हूं। दानवों को देवराज इंद्र की वेदों के राह पर चलने की बात याद आई। दानवों पर भगवान बुद्ध के उपदेशों का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने वेद आचारण व यज्ञ करना बंद कर दिया।
ऐसा करने पर दानवों की शक्ति कम होने लगी। यह देख देवताओं ने दोबारा दानवों पर हमला कर स्वर्ग हासिल कर लिया। इस तरह भगवान बुद्ध ने सृष्टि का मंगल किया।
10.कल्कि अवतार-
धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान विष्णु कलयुग, के अंत में भगवान कल्कि के रूप में अवतरित होंगे। कलयुग में जब पाप हद से ज्यादा बढ़ जायेगा, तब भगवान श्रीहरी अपना दसवा अवतार लेंगे और दुष्टों का नाश करेंगे और फिर से एक नए सत्ययुग की स्थापना करेंगे। भगवान कल्कि देवदत्त नमक घोड़े पर सवार हो कर आएंगे और पापियों का नाश कर धर्म की पुनः स्थापना करेंगे। उसी के सार्थ एक नए युग का आरम्भ होगा और कलयुग समाप्त हो जायेगा।
निष्कर्ष-
भगवान विष्णु के अनेक रूप है, अनंत अवतार है, और यह सभी अवतार भौतिक जगत में समय-समय पर विभन्न कार्य करने के लिए अवतरित होते है। अवतार लेते समय भगवान विष्णु जो रूप लेते है, वो उस कार्य के लिए उपयुक्त होता है।
भगवत गीता में यह वर्णित है, की भगवान विष्णु अपनी अंतरंग शक्ति के प्रभाव द्वारा भक्तों की रक्षा तथा असुरों का नाश करने के लिए प्रकट होते है। एक भक्त को यह समझना चाहिए की भगवान विष्णु एक सथान पशु या मनुष्य के रूप में नहीं प्रकट होते, उनका वराह मूर्ति, अश्व या कछुए के रूप में प्रकट होना उनकी अंतरंग शक्ति का प्रदर्शन मात्र है।