Ganesh Atharvashirsha: गणेश अथर्वशीर्ष के बारे में हिंदी अर्थ सहित

Ganesh-Atharvashirsha

यह गणेश अथर्वशीर्ष एक ऐसी प्रार्थना है जो पार्वती पुत्र, गणपति को प्रशन्न करने के लिए की जाती है। जैसे कि हम सभी जानते है कि हिन्दू धर्म में प्रत्येक दिन किसी ना किसी भगवान को समर्पित किया जाता है| यदि हम बात करे बुधवार के दिन की तो यह दिन भगवन गणपति को समर्पित किया गया है, जिनकी उपासना के लिए और भगवन गणेश को प्रसन्न करने के लिए इस गणेश अथर्वशीर्ष पाठ को किया जाता है । यह एक विशेष प्रकार की पूजा, आराधना, और स्तोत्र है, जिसमें गणेशजी की महिमा, गुण, और प्राप्तियाँ व्यक्त की गई है।

बुधवार के दिन भगवन गणेश की आराधना करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, यूँ तो गौरी पुत्र गणेश को प्रथम पूज्य कहा गया है जिसका मतलब है सबसे पहले स्थान पर पूजने वाले देवता।गणेश अथर्वशीर्ष कोई भी काम शुभारंभन करने से पहले भगवन गणेश को स्मरण किया जाता है तभी कोई काम सफल माना जाता है। 

Ganesh-Atharvashirshaआज इस लेख के माध्यम से आपको गणेश अथर्वशीर्ष के बारे में बताएंगे। इस गणेश अथर्वशीर्ष को प्रतिदिन नियमित रूप से करने से विग्नहर्ता आपके सारे विग्न को हर लेते है। और ऐसी मान्यता है कि बुधवार के दिन गणपति का पूजन, स्तोत्र पाठ और मंत्रोच्चारण से जातक का कल्याण होता है साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का भी निवास रहता है। मान्यतानुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु, केतु, और शनि के भारी प्रभाव से कोई काम न बन रहा हो उसे यह गणेश अथर्वशीर्ष पाठ को अवश्य करना चाहिए।  

तो आइये इस लेख के माध्यम से जानते है गणेश अथर्वशीर्ष के बारे में हिंदी अर्थ के साथ। इस गणेश अथर्वशीर्ष के साथ ही हम आपको बताते है 99Pandit के बारे में| यदि आप हिन्दू धर्म से संबंधित किसी भी तरह की पूजा, पाठ या यज्ञ जैसे त्रिपिंडी श्राद्ध, नवरात्रि की पूजा, गृह प्रवेश पूजा, गणेश पूजन, नवग्रह शांति पूजन, आदि करवाना चाहते है तो 99Panditji आपके लिए एक बहुत ही अच्छा विकल्प होगा| जहां आपको ज्ञानी पंडित और पुरोहित के साथ जोड़कर आपकी पूजा को सफल बनाने का प्रयास करते है। 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष हिंदी अर्थ सहित- Ganesh Atharvashirsha with Hindi Meaning

‘श्री गणेशाय नम:’

ॐ भद्रं कर्णेभि शृणुयाम देवा:।

भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:।।

स्थिरै रंगै स्तुष्टुवां सहस्तनुभि::।

अर्थ- हे देववृंद, हम अपने कानों से कल्याणमय वचन सुने। जो याज्ञिक अनुष्ठानों के योग्य है ऐसे है देव, अपनी आँखों से मंगलमय कार्यों को होते देखें निरोग इन्द्रियों एवं स्वस्थ देह के माध्यम से आपकी स्तुति करते हुए हम प्रजापति ब्रह्मा द्वारा हमारे हितार्थ सौ वर्ष अथवा उससे भी अधिक जो आयु नियत कर रखी है उसे प्राप्त करें। तात्पर्य है कि हमारे शरीर के सभी अंग और इंद्रियां स्वस्थ एवं क्रियाशील बनी रहे हम सौ या उससे अधिक लंबी उम्र पायें।

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:।

स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:।

स्वस्ति न स्तार्क्ष्र्यो अरिष्ट नेमि:।।

स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।2।

ॐ शांति:। शांति:।। शांति:।।।

अर्थ- महान कीर्तिमान, ऐश्वर्यवान इंद्र हमारा कल्याण करें, विश्व के ज्ञान स्वरूप, सर्वज्ञ, सबके पोषणकर्ता पूषा सूर्या हमारा कल्याण करे, जिनके चक्रीय गति को कोई रोक नहीं सकता वे गरुड़ देव हमारा कल्याण करे, अरिष्टनेमि जो प्रजापति है वे सभी दुरितों को दूर करने वाले है वे हमारा कल्याण करें, वेद वाणी के स्वामी, सतत वर्घनशील बृहस्पति हमारा कल्याण करे। 

Ganesh-Atharvashirsha-2

ॐ सर्वत्र शांति स्थापित रहे।

ॐ नमस्ते गणपतये।

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि।

त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।

त्वमेव केवलं धर्ताऽसि।

त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।

त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।

त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ॥1॥

अर्थ- हे! गणेश आपको नमन। आप ही प्रत्यक्ष तत्व हो। आप ही एकमात्र कर्ता हो। आप ही एकमात्र धर्ता हो। आप ही केवल हर्ता (दुःख हरने वाला) हो। आप ही समस्त विश्वरुप ब्रह्म हो। आप स्वयं ही शाश्वत आत्मस्वरूप हो।

ऋतं वच्मि।

सत्यं वच्मि॥2॥

अर्थ- मैं यथार्थ कहता हूँ। सत्य कहता हूँ,

अव त्वं माम्।

अव वक्तारम्।

अव श्रोतारम्।

अव दातारम्।

अव धातारम्।

अवानूचानमव शिष्यम्।

अव पश्चात्तात्।

अव पुरस्तात्।

अवोत्तरात्तात्।

अव दक्षिणात्तात्।

अव चोर्ध्वात्तात्।

अवाधरात्तात्। सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात्॥3॥

अर्थ- हे! गणेश, आप मेरी रक्षा करो, वक्ता की रक्षा करो, श्रोता की रक्षा करो, दाता की रक्षा करो, धाता की रक्षा करो, आचार्य की रक्षा करो, शिष्य की रक्षा करो, आप पश्चिम से रक्षा करो, पूर्व से रक्षा करो, उत्तर से रक्षा करो, दक्षिण से रक्षा करो, आप आगे से रक्षा करो, आप मेरी पीछे से रक्षा करो, आप सब ओर से रक्षा करो। 

त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः।

त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः।

त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि।

त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।

त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥4॥

अर्थ- आप वाङ्मय हो, आप चिन्मय हो, आप आनंदमय हो, आप ब्रह्ममय हो, आप सच्चिदानन्द अद्वितीय परमात्मा परमेश्वर हो, आप प्रत्यक्ष ब्रम्ह हो, आप ज्ञानमय हो, विज्ञानमय हो। 

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।

सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।

सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।

सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।

त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः।

त्वं चत्वारि वाक् पदानि॥5॥

अर्थ- यह सारा जगत आपसे उत्पन्न होता है,यह सारा जगत आपसे सुरक्षिक रहता है, यह सारा जगत आम लीन होगा, यह अखिल विश्व आपमें ही प्रतीत होता है, आप ही भूमि जल, भूमि, अग्नि,वायु, और आकाश हो। आप ही परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी चतुर्विध वाक् (चार प्रकार की वाणी) हो। 

त्वं गुणत्रयातीतः।

त्वं अवस्थात्रयातीतः।

त्वं देहत्रयातीतः।

त्वं कालत्रयातीतः।

त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्।

त्वं शक्तित्रयात्मकः।

त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्।

त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम्॥6॥

अर्थ- आप सत्व, राज, तम इन तीनो गुणों से परे हो, आप स्थूल, सूक्ष्म और कारण इन तीनो देह से परे हो, आप भूत, भविष्य, वर्तमान इन तीनो कालो से परे हो, आप नित्य मूलाधार चक्र में स्थित हो, आप प्रभु शक्ति, उत्साह शक्ति, मंत्र सकती इन तीनो शक्तियों से संयुक्त हो, योगीजन नित्य आपका ध्यान करते है, ऋषिमुनिगण नित्य आपका ध्यान करते है, आप ब्रह्मा हो, विष्णु हो, रूद्र हो, आप इंद्र हो, आप अग्नि हो, आप वायु हो, आप सूर्य हो, आप चण्द्रमा हो, आप ही सगुण ब्रह्मा हो, आप ही निर्गुण त्रिपाद, भू, भुवः, स्वः और प्रणव (ॐ) हो। 

Ganesh-Atharvashirsha-3

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम्।

अनुस्वारः परतरः।

अर्धेन्दुलसितम्।

तारेण ऋद्धम् ।

एतत्तव मनुस्वरूपम्।

गकारः पूर्वरूपम्।

अकारो मध्यरूपम्।

अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्।

बिन्दुरुत्तररूपम्।

नादः सन्धानम्।

संहिता संधिः।

सैषा गणेशविद्या।

गणक ऋषिः।

निचृद्गायत्रीच्छन्दः।

गणपतिर्देवता।

ॐ गं गणपतये नमः॥7॥

अर्थ- गण के आदि अर्थात ‘ग्’ कर पहले उच्चारण करे। उसके बाद वर्णो के आदि अर्थात ‘अ’ उच्चारण करे। उसके बाद अनुस्वार उच्चारित होता है। इस प्रकार अर्धचंद्र से सुशोभित ‘गं’ ॐकार से अवरुद्ध होने पर तुम्हारे बीज मंत्र का स्वरुप (ॐ गं) है। गकार इसका पूर्वरूप है। बिंदी उत्तररूप है। नाद संधान है। संहिता संविध है। ऐसी यह गणेश विद्याहै। इस महामंत्र के गणक ऋषि है। निचृद-गायत्री छन्द है।  श्री गणपति  देवता है। वह महामंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः।

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।

तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥8॥

अर्थ- एकदन्त (एक दांत वाले) को हम जानते है, वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते है।  वह दंति ( गजानन) हमे प्रेरित करते है। 

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्। रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥

रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्। रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम्॥

भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।

आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्।

एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः॥9॥

अर्थ- एकदंत चतुर्भुज चरों हाथों में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किये तथा मूषक चिन्ह की ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लम्बोदर वाले सूप जैसे बड़े-बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर पर रक्त चंदन का लेप किये हुए रक्तपुष्पों से भलीभांति पूजित।भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता , जगत के कारण अच्युत, श्रष्टि के आदि में अविर्भूत प्रकृति और मनुष्य से परे, श्री गजानन जी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सभी योगियों में उच्च है।

नमो व्रातपतये नमो गणपतये।

नम: प्रथमपत्तये।।

नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय।

श्री वरदमूर्तये नमोनम:।।10 ।।

अर्थ- व्रातपति को मेरा प्रणाम, गणपति को मेरा नमन, एकदंत को मेरा नमन, प्रथम पति अर्थात शिवजी के गणों के अधिनायक को मेरा नमन,  लंबोदर, एकदंत, शिवजी के पुत्र तथा श्री वरदमूर्ति को प्रणाम है।

एतदथर्वशीर्ष योऽधीते।। स: ब्रह्मभूयाय कल्पते।।

स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते स सर्वत: सुख मेधते।। 11।।

अर्थ- यह अथर्वशीर्ष अथर्ववेद का उपनिषद है। इसका जो भी पाठ करता है, ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी होता है। किसी भी प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक नहीं होते। वह सब जगह सुख पाता है। वह पांचों प्रकार के महान पातकों तथा उपपातकों से मुक्त हो जाता है।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।।

प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।।

सायं प्रात: प्रयुंजानो पापोद्‍भवति।

सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।।

धर्मार्थ काममोक्षं च विदंति।।12।।

अर्थ- सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है। प्रातः काल पाठ करने वाला रात्रि के पापों का नाश करता है। जो प्रातः, सायं दोनों समय इसका पाठ करता है वह निष्पाप हो जाता है। वह सर्वत्र विघ्नों का नाश कर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है।

इदमथर्वशीर्षम शिष्यायन देयम।।

यो यदि मोहाददास्यति स पापीयान भवति।।

सहस्त्रावर्तनात् यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत।।13 ।।

अर्थ- इस अथर्वशीर्ष को जो अनुयायी न हो उसे नहीं देना चाहिए। जो मोह के कारण देता है वह पातकी हो जाता है। हजार बार पाठ करने से जिन कामों का उच्चारण करता है, उनकी सिद्धि इसके द्वारा ही मनुष्य कर सकता है।

Ganesh-Atharvashiraha-4

अनेन गणपतिमभिषिं‍चति स वाग्मी भ‍वति।।

चतुर्थत्यां मनश्रन्न जपति स विद्यावान् भवति।।

इत्यर्थर्वण वाक्यं।। ब्रह्माद्यारवरणं विद्यात् न विभेती

कदाचनेति।।14।।

अर्थ- इसके द्वारा जो श्री गणेश को स्नान कराता है, वह वादन्य बन जाता है। जो चतुर्थी तिथि को व्रत करके जाप करता है वह विद्यावान हो जाता है, यह अथर्व वाक्य है जो इस मंत्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है वह कदापि भय को प्राप्त नहीं होता।

यो दूर्वां कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।।

यो लाजैर्यजति स यशोवान भवति।। स: मेधावान भवति।।

यो मोदक सहस्त्रैण यजति।

स वांञ्छित फलम् वाप्नोति।।

य: साज्य समिभ्दर्भयजति, स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।15।।

अर्थ- जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का यज्ञ करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो के द्वारा यज्ञ करता है वह यशस्वी होता है, मेधावी होता है। जो हजार) लड्डुओं द्वारा यज्ञ करता है, वह इच्छित फल को प्राप्त करता है। जो रोगन के सहित समिधा से यज्ञ करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है।

अष्टो ब्राह्मणानां सम्यग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।। 

सूर्य गृहे महानद्यां प्रतिभासंनिधौ वा जपत्वा सिद्ध मंत्रोन् भवति।।

महाविघ्नात्प्रमुच्यते।। महादोषात्प्रमुच्यते।। महापापात् प्रमुच्यते।

स सर्व विद्भवति स सर्वविद्भवति। य एवं वेद इत्युपनिषद।।16।।

।। अर्थर्ववैदिय गणपत्युनिषदं समाप्त:। ।

अर्थ- आठ ब्राह्मणों को सभी रीति से भोजन कराने पर दाता सूर्य के समान प्रभावशाली होता है। सूर्य ग्रहण में प्रतिमा के पास मंत्र जपने से मंत्र सिद्धि होती है। यह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है। 

श्री गणेश अथर्वशीर्ष का महत्व- 

गणपति अथर्वशीर्ष अथर्ववेद का एक उपनिषद पाठ है जो बुद्धि और शिक्षा के देवता भगवान गणेश को समर्पित है। मान्यता है कि गणेश अथर्वशीर्ष का जाप करने से व्यक्ति के दुख दूर होते है, तथा उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। पाठ का जाप करने से भगवान गणेश के साथ व्यक्ति के संबंध को गहरा करने में मदद मिलती है। गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करने से छात्रों को पढ़ाई के प्रति ध्यान एकत्रित करने में सहायक होता है।

यह छात्रों को अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने और परीक्षा की तैयारी कर रहे युवाओं को सफल होने में मददगार है। यह उन लोगों के लिए भी विशेष रूप से फायदेमंद है जिनके जीवन पर राहु, केतु या शनि ग्रहों का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस पाठ को श्री गणपति अथर्वशीर्ष, गणपति उपनिषद या केवल अथर्वशीर्ष के नाम से भी जाना जाता है। 

गणेश अथर्वशीर्ष क्यों करना चाहिए-Why should Ganesh Atharvashirsha be done?

सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य, विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश की प्रति बुधवार को पूजा, मंत्रौच्चारण, और अथर्वशीर्ष पाठ करने से व्यक्ति का कल्याण होता है, और उसके जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। यह अथर्वशीर्ष गौरी पुत्र को समर्पित एक वैदिक प्रार्थना है। आइये जानते है इसके लाभ किन लोगो को मिलते है। 

जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहु, केतु, और शनि के नकारात्मक प्रभाव से उनके जीवन में कोई काम ना बन रहा हो तो उनके लिए यह पाठ अतियंत लाभदायक माना जाता है। गणेश अथर्वशीर्ष पाथ को प्रति बुधवार नियमित रूप से करने से व्यक्ति की सभी समस्याएँ दूर हो जाती है। 

गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने की विधि- Method of reciting Ganesh Atharvashirsha

इस गणेश अथर्वशीर्ष पाठ को करने की विधि कुछ इस प्रकार है, पाठ को विधिपूर्वक करने से अधिक लाभ की प्राप्ति होती है। पाठ को करने के लिए, प्रतिदिन सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर पूजा घर में आसन बिछाकर बैठना चाहिए। पाठ को बिलकुल सच्चे भाव और शांत मन से करना चाहिए। मान्यता है कि प्रथम पूज्य श्री गणेश जी के खास दिनों जैसे संकष्टी चतुर्थी और बुधवार के दिन इसका 21 बार पाठ किया जाये तो शुभ फल मिलता है।

निष्कर्ष

इस लेख में हमने जाना कि श्री गणेश अथर्वशीर्ष का महत्व और लाभ क्या है। गणेश अथर्वशीर्ष कोई आम पाठ भी है, बल्कि जीवन का एक मूल रूप है। प्रतिदिन पाथ को करने से मन को सुख-शांति और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि रोज शाम को इस पाठ को करने से दिन में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं और सुबह में अध्ययन करने से रात में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं। दोनों समय अध्ययन करने और गहन चिंतन करने से पापी व्यक्ति भी पापरहित हो जाता है। सर्वत्र अध्ययन करने से बाधाएं दूर होती हैं।

 

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